Tuesday 15 May 2012

शहर से वह लौटा था... मोती प्रकाश (Moti Prakash) की ग़ज़ल




आज सुप्रसिद्ध सिन्धी कवि मोती प्रकाश का जन्म दिन है। उनके कई कविता संग्रह, रेखाचित्र और निबंध प्रकाशित हैं। ऐसा माना जाता है कि अगर मोती प्रकाश ने  और कुछ न भी लिखा होता तो भी उनका एक ही गीत ‘आँधीअ में जोति जगाइण वारा सिन्धी’ उनको सिन्धी जगत में यह प्रतिष्ठा प्रदान करने के लिए काफ़ी था। 1947 के बाद भारत में पुनः जीवन प्रारंभ करने के कठिन दौर में इस गीत ने सिन्धी जाति को बहुत प्रेरणा और बल दिया। इस गीत को सिन्धी क़ौमी गीत का दर्जा प्राप्त है..
आज उनकी एक ग़ज़ल.. 

ग़ज़ल : मोती प्रकाश 

कई बरसों बाद दिया जला था
शहर से वह शायद घर लौटा था। 

लेकर लौह शरीर चला था घर से वह 
पिघले ज्यों मोम, धूप में वह घुला था।

मतवाला जवान निकला था गाँव से
बन बुज़ुर्ग, दुल्हन का वर लौटा था।

अपनी झोंपड़ी का अता-पता पूछा जब
बोले इस उम्र में आकर दिमाग़ फिरा था।

हर कोई हँसा था उसकी सादगी पर,
था समझदार पर पगला सा लगा था।


(अनुवाद : विम्मी सदारंगानी)

मोती प्रकाश (भारत): जन्म 15 मई 1931 सिन्ध के गाँव दड़ो, जि़ल ठट्टा में। कवि, निबंध लेखक, नाटककार, अदाकार। 1989 में सिन्ध के यात्रा वृतांत ‘से सभु सांढियम साह सीं’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार। 1977 से 2006 तक दुबई इंडियन हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक। वर्तमान में इंडियन इंस्टीट्यूट  ऑफ सिन्धालाजी,  आदिपुर से जुड़े हुए हैं।

मोती प्रकाश जी के विस्तृत परिचय और मेनका शिवदासानी से उनकी बातचीत का अंश पढ़ने के लिए कृपया इस लिंक को क्लिक कीजिये :



2 comments:

  1. Ek baar phir aapke dwara anuvadit Sindhi Ghazal padh kar mantramugdh reh gaya, anuvad karney aur hum sabse baantney ke liye aapka aabhaari huun

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