Thursday 17 May 2012

सूफ़ी कवि शाह अब्दुललतीफ़ भिटाई - दो प्रसंग


शाह लतीफ़ (1689-1752) की सभी तस्वीरें काल्पनिक ही हैं। अब तक उनकी सच्ची मौलिक  तस्वीर प्राप्त नहीं हो सकी है। शाह लतीफ़, मझौले क़द से कुछ लंबे होंगे,  चौड़े  कंधे, शरीर न अधिक भरा हुआ, न अधिक दुबला पतला। रंग गेहुँआ, बाल काले सुनहले से और बड़ी बड़ी काली आँखें।  


शाह लतीफ़ की कुछ और काल्पनिक तसवीरें देखने के लिए कुछ इंतज़ार करना होगा :)


1. सूआ, पालक, चूका 

सूफ़ी कवि शाह अब्दुललतीफ़ भिटाई ने एक बार अपने एक मुरीद से पूछा - ‘बाहर यह आवाज़ कैसी है?’
मुरीद ने जवाब दिया - ‘कि़बला! सब्ज़ी वाला बाकरी है।’
शाह लतीफ़ ने दूसरा सवाल किया - ‘क्या हाँक लगाता है? क्या बेच रहा है?’
मुरीद बोला - साईं, वह कहता है, ‘सूआ, पालक, चूका...’
शाह ने उत्तर दिया - ‘बिल्कुल सही कहता है वह। सूआ, पालक, चूका... जो पलक सोया (एक पल भी सोया), सो चूक गया।’



2. कुछ नहीं

किसी शाह लतीफ़ से सवाल किया - शाह साईं! आप सुन्नी हैं या शिया?’
शाह लतीफ़ ने मुस्कुराकर कहा - ‘मैं दोनों के बीच में हूँ।’
वह शख़्स आश्चर्य से बोला - ‘पर साईं! दोनों के बीच तो कुछ भी नहीं है।’
शाह लतीफ़ ने उसी मुस्कान से कहा - ‘बिल्कुल। मैं भी कुछ भी नहीं हूँ।’


4 comments:

  1. wah! jo ek pal bhi soya so chuka... chhoti - chhoti aam baaton mein yun kavita ke bimb khoj lena ahr kisi ke bas ka nahin..
    dhanyawad Vimmi Shah Bhitayi se bhent karane ke liye :)

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    1. बहुत शुक्रिया चित्तरंजन :) शाह साहब से मेरी भी भेंट हो जाती है न इस तरह फिर फिर से :)

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  2. ‘बिल्कुल। मैं भी कुछ भी नहीं हूँ।’
    क्या बात है...

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    1. धन्यवाद् मनोज जी, शाह लतीफ़ के सम्पूर्ण काव्य का अगर अनुवाद हो सके तो कितना अच्छा हो..

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