Wednesday 9 May 2012

पुष्पा वल्लभ की कविता




कोल्हन : पुष्पा वल्लभ






प्राचीन काल की मैं कोई हस्ती हूँ .

मेरा मन 

मोहेंजोदड़ो की प्रतिमा. 

मैं ही हूँ वह नर्तकी

जिसके नृत्य करते हाथ हैं 

दो सफ़ेद उड़ते कबूतरों जैसे.


मेरी पायल की छन छन से

मंदिर की घंटियाँ जाग जायें,

आसमान में मुखड़ा दिखलाए सूरज

दुनिया में सुबह का पयाम हूँ मैं..


मैं ही लक्ष्मी, मैं ही सरस्वती 

मैं ही दुर्गा हूँ .

सच पूछें तो 

अन्याय के भूत का विनाश करने वाली

मैं ही काली हूँ.

पूजी केवल मंदिरों में जाती हूँ

बाहर तो बस रास्ते की धूल हूँ.

रात की काली चादर

और दिन का चूल्हा चौका हूँ मैं.



मैं!

सफ़ेद कपड़े, साफा,

जूते, कोट पहने हुए 

इस आदमी के पीछे पीछे 

बंधेज का घाघरा और 

गुलाबी चुनरी ओढ़े 

नंगे पैर चलती

मैं कोल्हन हूँ !


(सिन्धी से अनुवाद : विम्मी सदारंगानी)

पेंटिंग 'fisher woman' के लिए स्वाति रॉय जी का आभार.  



पुष्पा वल्लभ (सिंध) :  १५ जनवरी १९६३ को थरपारकर  में जन्म. बायोमेडिकल कॉलेज, कराची के माइक्रो-बायोलाजी विभाग में व्याख्याता. सिंध के सुप्रसिद्ध लेखक और अनुवादक वलीराम वल्लभ की सुपुत्री.  प्रकाशित कविता संग्रह - 'दरी-अ खां बाहिर' (खिड़की से बाहर) १९८५ और 'बंद अखियुन में आसमान' (बंद आँखों में आसमान) २०१०.


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