Friday 11 May 2012

मंटो के जन्मदिन पर..



मंटो, सकीना और हेमा..









आज मंटो का सौवां जन्मदिन है.
मुझे सकीना और हेमा याद आ रही हैं.
पिछले ही हफ्ते अहमदाबाद स्टेशन पर ८-९ साल की एक बच्ची से मिलना हुआ.. मैं रेल टिकट का स्टेटस जानने के लिए कंप्यूटर स्क्रीन के सामने खड़ी थी और वह की बोर्ड पर अपना हाथ रखे हुए थी.. मैंने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा, वह भी मुस्कुराई. बोली, मैं बताऊँ? मुझे अचरज हुआ.. मैला सी फ्रॉक पहने, उलझे उलझे बालों वाली यह लड़की मुझे मेरी टिकट का स्टेटस देखकर बताएगी और वह भी कंप्यूटर पर! मैंने कहा ठीक है, मैं नंबर बोलती जाती हूँ, तुम टाइप करती जाओ.. दो-तीन बार कोशिश करने पर स्टेटस पता चल गया, टिकट कन्फ़र्म हो गया था. मुझे राहत मिली और मुझे यह ख़ुशी देकर वह भी खुश थी. मैंने नाम पूछा. उसने बताया, हेमा. मैंने कहा बड़ा ही सुन्दर नाम है तो वह शर्मा गई और हँस पड़ी. मैंने उसकी होशियारी की तारीफ़ की तो बताया कि तीसरी कक्षा में पढती है. मैंने पूछा कि यहाँ प्लेटफ़ार्म पर क्या कर रही हो. तो हाथ के इशारे से क्लोक रूम की ओर प्लेटफ़ार्म की तरफ़ इशारा करके बोली, वहां रहती हूँ. मुझे आश्चर्य हुआ. मैं तो समझी थी कि शायद यह भी मेरी तरह अपनी गाड़ी के आने का इंतज़ार कर रही है. खैर, हमने सेब के जूस से अपना गला तर किया. मेरी गाड़ी आने में कई घंटे बाकी थे, बैग तो क्लोकरूम में रख दिया था पर किताबों का एक बैग भी था . मैंने स्टाल वाले से विनती की वह मेरी किताबें अपने पास रख ले, ताकि इस बीच मैं अहमदाबाद के किसी अच्छे बुक स्टोर से हो आऊं. दुकान वाला बोला, किताबें दिखाइये. मैंने कहा ये रहा बैग, इस लड़की के पीछे. उसने कहा मगर दिखाइए तो सही कि कितना बड़ा है. मैंने हाथ से इशारा करते हेमा से कहा, बेटा थोडा इधर होना. हेमा वहां से नहीं हटी और उसने अपनी फ्रॉक ऊपर उठा दी. एक पल को मैं जैसे कुछ समझ ही नहीं पाई कि ये क्या हुआ.. फिर मैंने एकदम से उसकी फ्रॉक नीचे खींचकर ठीक की और आसपास देखा कि कहीं कोई बुरी नज़र इस बच्ची को घूर तो नहीं रही..  हेमा की इस हरकत ने मुझे सर से लेकर पैर तक हिला दिया था, ऐसी मासूम लड़की.. ऐसी मासूम हरकत जाने अनजाने में.. या कोई और भी बात थी..  मैं उस से अधिक बात नहीं कर पाई.. उसके लिए डर गई थी. फिर भी कुछ बोल नहीं पाई सिवाय इसके कि अब तुम अपने माँ पापा के पास जाओ हेमा. इधर उधर मत घूमो. वेटिंगरूम तक आना मेरे लिए भारी हो गया.. ज़हन में हेमा थी और उस पर चेहरा मंटो की सकीना (कहानी 'खोल दो')  का था, या मुझे सकीना दिख रही थी और उसका चेहरा हेमा का था..  कुछ याद नहीं, कुछ होश नहीं...  आज जन्मदिन मंटो का है और मुझे सकीना के साथ हेमा का ख़याल भी आ रहा है.. मंटो को पता है क्या कि हेमा भी सकीना ही है.. सकीनाएं अब भी हैं.. 


2 comments:

  1. Manto yani ek afsananigar hi nahin balki haqikat bayan karne wala, hamesha sharafat ka naqaab odhe rahne wali duniya ko aaina dikhane wala.. par kuchh bhi nahi badla Manto... aaj bhi wahi wahshi - shaitan mann liye mask pahne chehre hi dikhte hai har tarah... aur chand toba tek singh jaise sarfire har daur ki tarah iss waqt bhi akele ladte mil jate yahan - wahan...

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  2. Manto yani ek afsananigar hi nahin balki haqikat bayan karne wala, hamesha sharafat ka naqaab odhe rahne wali duniya ko aaina dikhane wala.. par kuchh bhi nahi badla Manto... aaj bhi wahi wahshi - shaitan mann liye mask pahne chehre hi dikhte hai har tarah... aur chand toba tek singh jaise sarfire har daur ki tarah iss waqt bhi akele ladte mil jate yahan - wahan...

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