Thursday 10 May 2012

अर्जुन हासिद (Arjun Hasid) की कविता



ख़त: अर्जुन ‘हासिद’



                                    Jozef Israëls (1824-1911) Dutch Artist. शायद सेल्फ-पोर्ट्रेट 


यह ख़त
जो अब भीगकर भुरभुरा गया है
काग़ज़ का रंग भी उड़ गया है
और स्याही का भी
ठीक ऐसे ही जैसे मेरे अहसासों का।
आप शायद पढ़ न पाएं यह ख़त
पढ़ लेंगे तो भी समझ नहीं पाएंगे
वक्त  के साथ भाषा का मूल्य और मान भी तो बदल गया है ना!

अपनी वीरानियों का बयान किया है उसने
और मुझ पर बेवफ़ाई का इल्ज़ाम भी मढ़ा है
इस इल्ज़ाम को ज़िंदगी की आखि़री घड़ी तक 
देखने और समझने के लिए ही
संभाले हुए हूँ यह ख़त।

किसी जगह का ज़िक्र करते लिखा है उसने
कि उस जगह जब फिर से गए होगे
तो हमारी याद भी आई तो होगी?
मेरी याददाश्त में तो उस जगह की 
कोई पहचान ही नहीं है।
प्यार शायद छोटी छोटी बातों में ही 
खु़द को निहारता और परखता है।

मेरा उससे प्यार रहा भी है या नहीं,
उसने तो मुझे ऐसा ख़त लिखने के क़ाबिल समझा है!
इस ख़त का एक-एक शब्द याद है मुझे
इतनी बार पढ़ा है मैंने यह ख़त।
आज मेरे पोते के हाथ में है यह ख़त,
कहीं से हाथ लग गया होगा उसे
मैं निश्चिन्त हूँ
वह पढ़ नहीं पाएगा।

(अनुवाद : विम्मी सदारंगानी)



अर्जुन ‘हासिद’ (भारत): जन्म 7 जनवरी 1930, कराची. हासिद साहब सिन्धी ग़ज़ल के उस्ताद शायरों में माने जाते हैं। मुख्य काव्य संग्रह - ‘पथर पथर कंडा कंडा’ 1974, ‘मेरो सिजु’ 1984, ‘मोगो’ 1992, ‘साही पटिजे’ 2006, ‘न इएं न’ 2009. ‘मेरो सिजु’ (मैला सूरज) पर साहित्य अकादमी पुरस्कार। हासिद की गज़लों की विषेषता है उनके विषय और भाषा शैली। 



अर्जुन ‘हासिद’ की तस्वीर:  http://www.encyclopediasindhiana.org से साभार 

12 comments:

  1. प्यार शायद छोटी छोटी बातों में ही
    खु़द को निहारता और परखता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया मनोज जी.. जी, प्यार बिलकुल छोटी छोटी बातों में ही खुद को निहारता है :) इस कविता को आपके ब्लॉग की आज वाली कविता से जोड़कर देख रही थी..

      Delete
  2. आप शायद पढ़ न पाएं यह ख़त
    पढ़ लेंगे तो भी समझ नहीं पाएंगे
    पत्र भाषा से परे भाव ही अधिक होता है शायद, इसलिए उसे वही समझ सकता है जिसके लिए लिखा गया हो...!
    अनुवाद के माध्यम से कविता हम तक पहुँचाने के लिए आभार!

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनुपमा जी .. इसीलिए तो कोरा कागज़ भी संभाल कर रखा जाता है :)

      Delete
  3. बहुत सुन्दर कविता और जीवंत अनुवाद..बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद राजेश्वर जी. अर्जुन हासिद हैं तो ग़ज़ल के बादशाह पर उन्होंने कई कविताएँ भी सुन्दर लिखी हैं और यह उनमें से एक है.

      Delete
    2. vimmi , khul ja simsim .. khajaana haath lag jaaye . aisa hi hai tumhara anuwad. sunadr aur sahaj.
      Ahmedabad mein MICA aur IIT mein imagination ka paper leti hain Rita Kothari. sindh aur sindhi bhasha par unhone bahut kaam kiya hai. unke kuchh videos dekhne laayak hain. Vimmi ho sake to unka Translating India jarur dekhna.

      Delete
    3. bahut bahut dhanyawad Aparna :) Rita meri bahut achchi dost hain. unki kitab 'Translating India' mere paas hai. khushi hui ki aap unko jaanti hain. aur haan, Rita ke videos ka batane ke liye shukriya :)

      Delete
  4. behatreen.. din bhar ki bhagam bah me is behad khubsurat kavita ko padh nahin paya..
    Vimmi har bar ek naya aur nayaab tohfa de rahi hai apne anuvad ke maadhyam se.. jitna bhi dhanyawad diya jaye kam hai..

    ReplyDelete
  5. Jee Chitt Ranjan.. din bhar ki dauddhoop ke baad aisi kavita parhne ko mile to parhe anparhe likhe anlikhe khat saamne aa jate hain :) bahut shukriya aapka bhi.. aap dil se parhte hain..

    ReplyDelete
  6. वक्त के साथ भाषा का मूल्य और मान भी तो बदल गया है ना!
    बेहतरीन कविता और खूबसूरत अनुवाद. बधाई विम्मी जी!

    ReplyDelete