Wednesday 2 May 2012

सहर शाह की कविता

'ताबूत' : सहर शाह  


















यह घर मेरा मक़बरा है

और उस घर का एक कमरा

बंद ताबूत,

उस कमरे में 

यह बिस्तर मेरा मुदफ्न है.


कई साल, सदियों और जन्म पूर्व 

मेरे ज़िंदा वजूद को 

इत्र से महकते  पानी से नहलाकर 

'प्रोफेसी' और 'पाइजन' की 

खुशबू से सुगन्धित कर

लाल रेशम के कफ़न में लपेटकर 

सुर्ख फूलों का चुम्बन देकर 

बंद ताबूत जैसे कमरे में उतारा गया था.


और उस रात सिर्फ तारे ही थे

जो रात के आखिरी पहर

मेरी मौत पर रोये थे.


और उस रात,

जो रात सभी रातों से सुन्दरतम होती है

चौदहवीं का चाँद अपने मधु यौवन का नूर

आसमान से बरसा रहा था..

हाँ, उस रात

उस सौभाग्यवती रात 

बिस्तर की सिलवटों वाली क़ब्र में 

दफ़न हो गई थी मैं!


घोर अंधियारी क़ब्र में हर रात

शिकारी नाखूनों से नोचकर 

मेरे मृत ह्रदय को जिलाया जाता है 

लम्बी पूछताछ की जाती है पिछले आरोपों की.


फिर, यह क़ब्र तंग होती जाती है

यहाँ तक कि मेरी पसलियाँ पसलियों को भींचने लगती हैं

पर मेरी चीखें क़ब्र से बाहर 

इस सन्नाटे में भी कोई नहीं सुन पाता!


कुछ लम्हों के बाद 

क़ब्र फैलने लगती है 

और फैलते फैलते मीलों तक फैल जाती है.

और उस पल अकेलेपन का अहसास

तेज़ी से रेंगता हुआ

अपने सौ पैरों से मेरे एक अकेले ह्रदय को

जकड़ लेता है.

अकेलापन ज्यों-ज्यों 

अपने पंजे गाड़ता है

त्यों-त्यों दर्द से नाता जुड़ता जाता है.

अकेलेपन के इस अजगर से 

बचने के लिए मैं 

बुक्का फाड़कर रोती हूँ 

और वापसी में 

अपनी ही चीखों की प्रतिध्वनियाँ 

मुझे और भयभीत कर देती हैं.


क़ब्र के इस घुप्प अँधेरे में

दोज़ख़ के अंगारे ही 

कुछ पलों के लिए रोशनी बिखेरते हैं

और इस से पहले की मेरी आँखें 

रोशनी के इस निर्मल अहसास को लपक लें 

मुझे इन शोलों पर लिटा दिया जाता है

तपने, जलने, तड़पने के बाद

कोई प्यास बाकी नहीं रहती.

वक़्त की ख़ूनी धारा

छल छल बहती रहती है.


हाँ, कभी कभी

ऐसा भी होता है

जन्नत की ओर खुलनेवाली खिड़की 

एक-दो पल के खुलती है 

शीतल, मधुर और सुगन्धित 

ठंडी हवा घुलती है.

उस एक पल की महकती स्मृति को

अपने पल्लू में बाँध लेती हूँ 

और धरती से आकाश तक

अनगिनत वर्षो तक फैले 

पीड़ादायक, चुभते, डंसते अँधेरे लम्हों में 

अपने आँचल से 

उस सुगन्धित स्मृति के 

एक पल की गाँठ छुड़ा देती हूँ

और सुबक पड़ती हूँ...

(अनुवाद : विम्मी सदारंगानी)
सहर शाह के काव्य संग्रह 'चोडहिं चंडु आकास' से.  

सहर शाह (सिंध) : कवि, व्याख्याता. अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित.  'चोडहिं चंडु आकास' सुप्रसिद्ध काव्य संग्रह. 'शऊर शइर शाइरी' २००८ में पुरुस्कृत. २००९ में राष्ट्रपति अवार्ड 'तमगा-ए-इम्तियाज़' . 



3 comments:

  1. सहर शाह जी की इस मार्मिक कविता के लिए विम्मी जी आपका बहुत शुक्रिया! बहुत महत्वपूर्ण कार्य कर रही हैं आप. शुभकमनाएं...

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    1. अच्छा लगा कि आपको यह कविता पसंद आई.. बहुत धन्यवाद् सुमिता जी..

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