Friday 13 July 2012

सुरंदे के संगीत पर अपनी जान वारने वाला राजा



'surando' photo courtesy : asanjokutch.com 
सिंध, कच्छ और राजस्थान  का प्राचीन लोक-वाद्य है सुरंदो. लकड़ी पर सुन्दर नक्क़ाशी, घोड़े के बालों से बने तार और किनारे पर रंगबिरंगे  धागों और ऊन से की गयी सजावट. सुरंदे में छः तार होते हैं - पांच स्टील के और एक तांबे का, और हर तार का एक अलग नाम होता है. इस वाद्य को सारंगी की तरह ही बजाया जाता है. बढ़िया सुरंदा, सागौन की लकड़ी से बनता है. इस पर मोर के पंख के आकार की सुन्दर नक्क़ाशी की जाती है और चटकीले रंगों से इसकी सुन्दरता और बढ़ जाती है. कमाल का साज़ है सुरंदा. सुरंदा वादक दुर्लभ होते जा रहे हैं. भारत और सिंध में सुरंदे के गिनेचुने कलाकार ही बचे हैं. भारत से स्वर्गीय सिदिक जत और सिंध से मुहम्मद फ़कीर मुहाणों, सुरंदा उस्तादों में माने जाते थे. कच्छ के बन्धुओं मुस्तफा अली जत और उस्मान सोनू जत का नाम, बेहतरीन सुरंदा वादकों में गिना जाता है. 


Bijal aur Raidiyach
सुरंदे की बात निकलती है तो बीजल और राइदियाच याद आते हैं. एक था बीजल और एक था राइदियाच. बीजल एक गवैया और रायदियाच, गिरनार झूनागढ़ का राजा. सिंध-कच्छ की प्रसिद्ध लोक कथा  'सोरठ राइदियाच' में बीजल चारण ने यही साज़ बजाकर राजा राइदियाच का मन मोह लिया था और ईनाम में उनका सिर माँगा था. और रानी सोरठ के लाख समझाने पर भी, बीजल से किये हुए वायदे अनुसार राइदियाच ने स्वयं अपना सिर क़लम कर इस कलाकार के आगे धर दिया! रानी सोरठ ने अपने पति की जलती चिता में कूदकर जान दे दी. मजबूरी में किये हुए अपने इस गुनाह से बीजल भी बहुत शर्मिंदा और दुखी था. पश्चाताप करते हुए उसने भी प्राण त्याग दिए. अब न ऐसा कोई बीजल है और न ऐसा कोई राइदियाच. 

 'सोरठ राइदियाच' की प्रसिद्ध लोक कथा आप यहाँ पढ़ सकते हैं :

http://www.museindia.com/viewarticle.asp?myr=2011&issid=39&id=2819

 
और पेश है सुरंदे की प्यारी धुन, कलाकार हैं मुहम्मद फ़कीर मुहाणों. बशुक्रिया यूट्यूब  

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