यह कविता अनुवाद कर, कृष्ण राही जी का परिचय टाईप करने लगी तब ध्यान गया कि आज ही उनका जन्मदिन भी है... यह कविता उन्हें याद करते..
वोट : कृष्ण राही
photo courtesy : Indian Institute of Sindhology, Adipur |
मेरा एक वोट है।
वोट, जो मेरा है
एक हक़ है
एक आवाज़ है
एक हथियार है
एक ताक़त है
एक मिल्कियत है।
मेरे पास मेरा एक वोट है।
यह वोट
मेरा है, ऐसे
जैसे मेरा नाम
जिसका फ़ायदा
मैं नहीं, कोई और ले सके!
यह वोट
मेरा हक़ है,
वह, जो मुझ से नाहक़
मेरे अन्य हक़ भी छीनता रहे!
यह वोट
मेरी आवाज़ है,
वह जो मुझे नहीं,
किसी और को उठानी है!
यह वोट
मेरा हथियार है,
वह, जो मुझ पर वार करे!
यह वोट
मेरी ताक़त है।
वह, जो मुझ पर हुकुमरानी करे!
यह वोट
मेरी मिल्कियत है,
वह, जो किसी और को देने के लिए है।
वोट देना
एक अक्लमंद की बेवकू़फ़ी है
और वोट न देना
एक बेवकूफ़ की अक्लमंदी है।
जानता हूँ
कि इन्सान एक ही वक़्त
अक्लमंद और बेवक़ूफ़ नहीं हो सकता।
पर देखता हूँ कि
चुनाव के समय
इन्सान
एक ही समय
अक्लमंद और बेवक़ूफ़ होता है।
(अनुवाद : विम्मी सदारंगानी)
कृष्ण वछाणी ‘राही‘ (भारत): जन्म 25 मई 1932 को लाड़काणा सिन्ध - देहांत 2007 में मुंबई में। वरिष्ठ कवि-आलोचक। काव्य संग्रह ‘कुमाच’ (1969) पर 1971 में साहित्य अकादमी ईनाम। परंपरागत सिन्धी काव्य रूपों के साथ नई कविता भी। राही, प्रेम और व्यंग्य के कवि हैं।
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ReplyDeleteएक और खूबसूरत अनुवाद Vimmi Sadarangani की कलम से...
ReplyDeleteये संयोग भी अच्छा रहा कि कृष्ण राही जी के जन्मदिन पर ही उनकी इस सशक्त रचना से पहचान हो सकी..
सच हैं वोट एक दो तरफ़ा मार करने वाला हथियार.. और उसके सहारे दुनिया भर में वोट मालिकों पर पलट वार ही ज्यादा हुए हैं..
कृष्ण जी को श्रद्धापूर्वक नमन ..!!
शुक्रिया चित्तरंजन.. जी, कृष्ण राही जी का जन्मदिन है, इस तरफ़ मेरा ध्यान भी उनका परिचय टाइप करते वक़्त ही गया.. काफी देर हो गई थी, तारीख बदलने वाली थी, इसलिए जल्दी से यह कविता लगा दी :)
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