काफ़ी : सिन्धी सूफी कवि सचल सरमस्त
अब्दुल वहाब (१७३९-१८२६) का नाम पड़ा 'सचल सरमस्त', उनके सच कहने, धर्म के ठेकेदारों से न डरने के कारण.. सचल जब सिर्फ १३ साल के थे, महान सूफी कवि शाह अब्दुल लतीफ़ का उनसे मिलना हुआ और देखते ही उन्होंने कहा, ''हमने जो देगची चढ़ाई है, उसका ढक्कन यह बालक उतारेगा'' अर्थात जो बातें हमने ढके छुपे ढंग से कहीं हैं, उन्हें ये ऊंची आवाज़ में कहेगा, निडर होकर.. सचल, सत्य और प्रेम के पुजारी हैं मगर उनकी पूजा पूजा, माला और मनके वाली नहीं है.. वे तो क्रांतिकारी कवि हैं, गलत परम्पराओं, धर्म के ढकोसलों के खिलाफ सख्त आवाज़ उठाने वाले.. उनका कहना है, 'मजहबों ने मनुष्य को उलझाया, अक्ल की बात करने वाला इश्क के नजदीक न पहुँच पाया'.. सचल की काफ़ियों (काव्य रूप) में अध्यात्म, श्रृंगार और प्रेम का संगम है. सचल को 'शाइर-ए-हफ्त ज़बान' कहा जाता है क्योंकि वे सात भाषाओं (सिन्धी, अरबी, सिराइकी, पंजाबी, उर्दू, पर्शियन और बलोची) में कलाम कहते थे..
मुल्ला मार न तू , साजन देखूं या सबक़ पढ़ूँ?
यार ने हमको 'अलिफ़' पढ़ाया,
'बे' की बात ना कर तू,
साजन देखूं या सबक़ पढ़ूँ?
शाह दराज़न, सचल बसता,
मन का मरहम तू..
साजन देखूं या सबक़ पढ़ूँ?
मुल्ला मार न तू ..
(सचल का कलाम, सुर तलंग)
(सिन्धी से अनुवाद : विम्मी सदारंगानी)
मुल्ला मार न तू ..
ReplyDeletemaarak hai ..
jee Aparna.. maarak hi hai Sachal Sarmast.. Shukriya..
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Deleteयह एक कलाम पढ़कर, सचल जी को और अधिक जानने की इच्छा हो रही है. आपके लेख का इंतज़ार है.
Deleteशुक्रिया सुमिता जी :) जी अवश्य.. ३-४ दिन में..
DeleteSachal Sarmast! ye naam bada apna sa lagne laga hai Vimmi Sadarangani ke uprokt varnan se.. aur jyada janane, padhne ki ichchha hai inke bare me..
ReplyDeletethanks Vimmi!
Dhanyawad Chitt Ranjan. Jee.. Shah Latif aur Sachal ek hi baat bolte hain.. Par Shah ke bol meethe hain aur Sachal ke maarak.. jaisa Aparna Manoj ne kaha.. jee zarur jald hi in par ek lekh share karungi. :)
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